पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर कड़ी कार्रवाई करते हुए NIA ने देश के आठ राज्यों से संगठन के 170 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया है. इसमें दिल्ली के शाहीन बाग इलाके के 30 लोग भी शामिल हैं।
आरोप है कि ये लोग देश विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और आने वाले समय में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहे थे।
किसी भी तरह के नुकसान की संभावना को रोकने के लिए इलाके में धारा-144 लगा दी गई है. लेकिन पीएफआई का नाम दिल्ली के लिए नया नहीं है।
इससे पहले दक्षिणी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में कई महीनों तक पीएफआई के नेतृत्व में ही धरना प्रदर्शन किया गया था।
शाहीन बाग आंदोलन से जुड़े सूत्रों बताया कि इस आंदोलन की शुरुआत पीएफआई के लोगों ने की थी। उन्होंने देश के मुसलमानों के खिलाफ सीएए और एनआरसी के कानूनों को बताकर लोगों को एकजुट करना शुरू किया, जिसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली।
बाद में इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में कई स्थानीय लोग भी शामिल हुए, जिससे इस आंदोलन को बल मिला और यह आगे बढ़ता गया।
जानकारी के मुताबिक वह सरकार के कदमों को ‘देश के मुसलमानों के खिलाफ की जा रही साजिश’ बताते हुए प्रदर्शन के लिए लोगों को इकट्ठा करते थे।
फिलहाल पीएफआई पर लगे आरोप उसी तर्ज पर हैं, जैसे शाहीन बाग आंदोलन के दौरान लगे थे। उस समय भी पीएफआई इसी तर्ज पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को इकट्ठा कर रहा था।
आंदोलन में फूट पड़ गई
जानकारी के मुताबिक शाहीन बाग आंदोलन के कुछ आयोजक पीएफआई के प्रस्तावों के सख्त खिलाफ हो गए थे। इसका मुख्य कारण यह था कि सरकार लगातार लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही थी कि ये कानून देश में किसी मुसलमान के खिलाफ नहीं हैं।
कई स्थानीय लोगों ने भी प्रदर्शन सभाओं में इस मुद्दे को उठाया था और यह जानने की कोशिश की थी कि उन्हें इन कानूनों का विरोध क्यों करना चाहिए जबकि यह उनके खिलाफ नहीं है।
लेकिन आंदोलन की रफ्तार में ऐसे लोगों की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया. इससे नाराज कुछ आयोजकों ने आंदोलन से हाथ खींच लिया था।
आपत्तिजनक गतिविधि
शाहीन बाग आंदोलन का सबसे ज्यादा प्रचार यह कहते हुए हुआ कि यह पूरी तरह से अहिंसक है और इतने लंबे आंदोलन के बाद भी आंदोलनकारियों से किसी को नुकसान नहीं पहुंचा है।
इस दौरान प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग और स्थानीय लोगों के जोरदार विरोध का भी मामला सामने आया. लेकिन इसके बाद भी आंदोलनकारियों ने कहीं भी कोई गड़बड़ी नहीं की।
जिसे इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया गया. पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में इसी तरह के प्रदर्शन के बाद दंगे भड़क उठे, जिसमें पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार 53 लोगों की मौत हो गई।
शाहीन बाग आंदोलन से जुड़े सूत्रों के मुताबिक आंदोलन शुरू होने के कुछ ही दिनों बाद पीएफआई से जुड़े लोगों की आपत्तिजनक गतिविधियां सामने आने लगीं। इस आंदोलन में दादी-नानी और महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई।
लेकिन जैसे ही स्थानीय लोगों को इसमें आपत्तिजनक लोगों के शामिल होने का पता चला तो लोगों ने इसमें अपने घर की महिलाओं को भेजना बंद कर दिया।
जानकारी के मुताबिक इसके बाद आंदोलन की छवि पर असर पड़ने लगा और लोगों के इससे दूर जाने की खबरें आने लगीं।
इसके बाद बाहर से लोगों को लाकर आंदोलन में जुटी भीड़ को दिखाने की कोशिश की जा रही थी. इसके लिए पीएफआई ने फंड मुहैया कराने की भी व्यवस्था की थी।
तनावपूर्ण स्थितियां
पीएफआई के दिल्ली अध्यक्ष की गिरफ्तारी के बाद इलाके में चर्चाओं का बाजार गरमा गया, लेकिन मंगलवार को 30 लोगों की गिरफ्तारी से माहौल तनावपूर्ण हो गया है।
इसे देखते हुए पुलिस ने सतर्कता बरतते हुए इलाके में किसी भी तरह के प्रदर्शन पर रोक लगा दी है. लेकिन इलाके के लोगों में जबरदस्त तनाव है।